लेखक :- विनय विक्रम सिंह ( मनकही )
राम खेलावन दउवा, घर के बाहेर परे तखत पे सगरे दिनमान खुखुआतै रहें, मुला साथै गुड़गुड़ियू पियत जात रहें, एक दाँय गुड़-गुड़-गुड़ होय फिर पान-दस मिन्ट तक खुक्क-खुक्क-खुक्क।
अइस लागत रहा, पहिले गुड़गुड़ी बात करति है, फिन राम खेलावन दद्दा कै खोंखी।
यहितना दुइनो एकदुसरे ते बतलात रहे, अपन सुख-दुख बाँटत रहे, बस कबो-कबो अपयें बड़कवे अउर छोटकवे लरिका का देखि के, जबै वे सामने परत रहें, याकै बात कहत रहें, "ओ रे लल्ला, दालान कै दिवारु चटक गै है, कोउ तो वहिमा पलस्तर करवा लियो, बाढ़त जाय रही है, कउनेयो दिन फाटि परी।" मुला दुइनो लरिका उनते औ अपुसै मा आँखि चोरावत, उन्ह पै बुद्बुदावत अपयें-अपयें धंधे निकर जात रहें।
अबु वह तखत खाली है, औ अँगनई के बीच मा दिवारु उठि गै है, जेहिसे दालान केरि वह दरार तुपि गै है।
- विनय विक्रम सिंह
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